युक्रेन संकट: NATO ने रूसी सुरक्षा मांगों को नजरअंदाज किया- रुस राष्ट्रपति

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युक्रेन संकट: NATO ने रूसी सुरक्षा मांगों को नजरअंदाज किया- रुस राष्ट्रपति

Anjali Yadav 22-02-2022 18:46:00

अंजलि यादव,

लोकल न्यूज ऑफ इंडिया,

 

नई दिल्ली: रूस और युक्रेन के बीच अब हालत बहुत खरब हो चुके है. पुरी दुनिया अब मानकर चल रही है किसी भी समय दोनों देशों के बीच युद्ध शुरू हो सकता है. चिंता की बात यह है इन देशों का युद्ध तीसरे विश्व युद्ध में बदल सकता है. रूस के युक्रेन के 2 क्षेत्रों डोनेत्स्क और लुंगस्क को अलग देश की मान्यता देने से आशंका बढ़ गई.  युक्रेन की निगाहें अमेरिका और यूरोपीय देशों पर है. उसे उम्मीद है कि युद्ध के हालत में वहां से पुरी मदद मिलेगी.  लेकिन अमेरिका और ब्रिटेन फिलहाल रूस पर कड़े प्रतिबंध लगाने पर सीमित हैं. इस बीच यूएन ने भी इस मसले पर बैठक बुलाई. यूक्रेन के पक्ष में अमेरिका की अगुवाई वाले नैटो की सेना ने भी पूर्वी यूरोप में अपना दखल बढ़ाया है. अमेरिका और रूस की कोल्ड वॉर पहले भी कई देशों के लिए मुसीबत बन गई है. रूस के बाद यूरोप क्षेत्रफल के हिसाब से दूसरा बड़ा देश है. अगर यूक्रेन को लेकर जंग हुई तो भारत समेत और भी देश इसके नुकसान से बच नहीं सकते. कारोबार,तेल सप्लाई,कोरोना वैक्सीन सप्लाई से तमाम तरह के काम दुनिया को प्रभावित करेंगे.  इन आशंकाओं के बीच सेंसेक्स समेत दुनिया भर के शेयर बाजारों में पिछले कई दिन से भारी गिरावट को देखा जा रहा है. दो देश या कुछ देश भले ही जंग लड़ें आज के वैश्विक युग में कोई भी देश उसके कुप्रभाव से अछूता नहीं रह पाएगा. अमेरिका और रूस जैसी महाशक्तियों के टकराव का केंद्र बने देशों का क्या होता है इसे जानने के लिए इतिहास के कुछ पन्ने पलटने होंगे. 1945 में दूसरे विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद शुरू हुए कोल्ड वॉर में कई देशों का हाल बेहाल हुआ. क्या हुआ उन देशों का जो पिछले 7 दशकों में इन दोनों महाशक्तियों की जंग या इनके बीच तनाव का अखाड़ा बना था.

1. क्रीमिया का कब्जा
 इससे पहले का सबसे ताजा उदाहरण है क्रीमिया. 2014 में रूस ने हमला करके यूक्रेन के इस हिस्से को अलग कर दिया. रूस ने क्रीमिया पर यह कहते हुए कब्जा करा था कि उस प्रायद्वीप पर उसका ऐतिहासिक दावा है. युक्रेन में 2014 में रूस समर्थक राष्ट्र्पति को उनके पद से हटा दिया. उससे नाराज होकर रूस ने दक्षिणी यूक्रेन के क्रीमिया प्रायद्वीप को अपने कब्जे में लिया. इस विवाद का इतिहास भी बहुत लंबा है. 1954 में रूसी आबादी वाले क्रीमिया को रूस से यूक्रेनी सोवियत गणराज्य में स्थानांतरित कर दिया. पहले पूर्वी यूक्रेन और क्रीमिया की अधिकांश आबादी रूस में है. जिनका रूस के प्रति लगाव बना और यही मुख्य कारण रहा कि रूस को क्रीमिया पर कब्जा करने में किसी विरोध का सामना नहीं करना.  

2. कोरिया विभाजन
 कई सालों तक चले युद्ध के बाद जिसमें अमेरिकी सेनाएं भी शामिल हुई  तो दूसरी ओर से रूस और चीन ने दखल दिया. 1953 में देश दो हिस्सों में विभाजित हुआ था.कम्युनिस्ट विचारधारा  के साथ बने उत्तर कोरिया में तब से तानाशाही शासन है और वहां के लोग किस हाल में हैं इस बारे में दुनिया को कुछ पता नहीं है. दूसरी ओर अमेरिका के पूंजीवादी व्यवस्था के साथ आए दक्षिणी हिस्से के लोगों को कोरिया नाम का देश मिला. आज भी उत्तर कोरिया के पक्ष में रूस और चीन खड़े हैं तो दक्षिण कोरिया की सुरक्षा के लिए अमेरिकी सैनिक हैं. उत्तर कोरिया पर कई तरह के
प्रतिबंध लगे है. जिसके कारण वहां के लोगों का जीवन बेहाल हुआ.
 

3.  चेकोस्लोवाकिया की लड़ाई
कोल्ड वॉर के दौरान कम्युनिस्ट रूस और पूंजीवादी अमेरिका के बीच असल लड़ाई इस बात की थी कि दुनिया के कितने देश किसके गुट में शामिल हो 1968 में जब चेकोस्लोवाकिया ने कम्युनिस्ट विचारधारा से अलग हटकर आर्थिक सुधारों की बात की तो फिर दोनों गुटों में तनाव बढ़ गया. वॉरसा पैक्ट से अलग होने और कम्युनिस्ट विचारधारा के खिलाफ साजिश का आरोप 20 अगस्त 1968 को रूस ने सोवियत गुट के बाकी देशों के साथ मिलकर चेकोस्लोवाकिया पर हमला किया. इस जंग ने पूर्वी यूरोप को अखाड़ा बना दिया रूस और अमेरिका के बीच शीत युद्ध का. इसके बाद यूगोस्लाविया, सर्बिया, क्रोएशिया जैसे कई देश एक-एक कर मैप में बंटते दिखाई दिए और इन सब का कारण था अमेरिका और रूस.

4.  क्यूबा मिसाइल क्राइसिस
1960 के दशक की शुरुआत में जब रूस ने क्यूबा में मिसाइलें तैनात कर दीं तो अमेरिका ने इसे अपनी सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए बदले की कार्रवाई शुरू की.तनाव बढ़ने के बाद  रूस ने मिसाइलें भले ही हटा लीं लेकिन आज भी क्यूबा अमेरिका और रूस समर्थित ताकतों के बीच वर्चस्व कायम करने की जंग का अखाड़ा बनाया. वहां रूस समर्थिक ताकतों के बीच वर्चस्व कायम करने की जंग का अखाड़ा बना. वहां रूस समर्थिक कम्युनिस्ट सरकार है. हजारों विपक्षी लोकतंत्र समर्थक नेता जिनका समर्थन अमेरिका करता है वे या तो देश से बाहर हैं या जेलों में बंद. खुफिया मिशनों को लेकर लगातार आरोप लगते रहते है.

5. बदहाल अफगानिस्तान
1970 के दशक में यहां रूसी समर्थन से सरकार चली हुई थी तो उसे उखाड़ने के लिए और एशिया में अड्डा जमाने के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान को जरिया बनाया और तालिबान जैसी ताकत को जन्म दिया. जिसके जरिए 1990 के दशक में अमेरिका रूस समर्थक सत्ता को उखाड़ फेंकने में कामयाब रहा. लेकिन वही तालिबान बाद में अमेरिका के लिए संकट बना. 9/11 के हमले के बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया और तालिबान को उखाड़ के फेका. 21 साल बाद फिर वही तालिबान रूस-चीन के सपोर्ट के साथ पलटवार करता है और पिछले साल यानी 2021 की 15 अगस्त से अफगानिस्तान फिर तालिबान के शासन की क्रूरता को झेला.  

6. वियतनाम कोल्ड वॉर का अखाड़ा बना
1960 के दशक की शुरुआत से पश्चिमी देश लगातार सैनिकों की तैनाती बढ़ाने लगे और ऐसा समय आया कि सिर्फ वियतनाम में 1 लाख 80 हजार से अधिक अमेरिकी सैनिक तैनात हुए. रूस-चीन के प्रभाव वाले उत्तरी वियतनाम इलाकों में अमेरिका की मौजूदगी के खिलाफ बगावत की गई और देखते-देखते इसने वियतनाम युद्ध का रूप लिया.  लाखों लोगों पर इस जंग की तबाही का असर हुआ था. लेकिन आज भी ये देश तबाही को नहीं भूला पाया.

7. हंगरी हमले ने लाखों लोगों को किया बेघर
1950 के दशक में हंगरी बना अखाड़ा. रूस के वर्चस्व को कम होते देख सोवियत संघ रूस ने 1956 में हंगरी सेना को घुसा दिया था. सोवियत जेलों में हजारों लोगों को ले जाकर बंद कराया गया. 2 लाख से भी अधिक लोग इस जंग के कारण घर-बार छोड़कर भागे.
अब युक्रेन महासंकट बना हुआ है. लड़ाई को टालने के लिए फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने हाल में रूस की यात्रा की और लड़ाई टालने के लिए कई स्तर पर कोशिशें जारी हैं लेकिन रूस की इन मांगों पर अमेरिका समेत नैटो के देश सहमत होंगे इसकी संभावना कम बता रहे है. 

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